बलबीर सिंह सीनियर… खिलाड़ी नहीं हॉकी की विरासत

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Balbir Singh Sr. One of greatest hockey player of india Latest sports news in hindi
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बलबीर सिंह सीनियर के नाम है ओलंपिक हॉकी फाइनल में सर्वाधिक गोल का रिकॉर्ड

विकास शर्मा

जयपुर। बलबीर सिंह सीनियर… एक ऐसा नाम, जिसने हॉकी खेली नहीं बल्कि उसे जीया… मेजर ध्यानचंद के बाद के कालखंड में भारतीय हॉकी का एक ऐसा नायाब हीरा, जिसकी बराबरी का खिलाड़ी आज तक मैदान पर उतरा ही नहीं। 96वें साल के बलबीर सिंह कार्डियक अरेस्ट के बाद चंडीगढ़ के मोहाली के एक अस्पताल में जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे हैं और उनके लाखों प्रशंसक उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं। इन प्रशंसकों में से 90 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने कभी बलबीर सिंह सीनियर को खेलते हुए किसी वीडियो क्लिप में भी नहीं देखा होगा लेकिन रिकॉर्ड बुक में दर्ज इस लीजेंड के कारनामे, सहज ही सभी के मन में उनके प्रति सम्मान पैदा कर देते हैं।

मेजर ध्यानचंद के बाद के भारतीय हॉकी के युग में सबसे सफल खिलाड़ी के तौर पर बलबीर सिंह सीनियर को याद किया जाता है। लगातार तीन ओलंपिक खेलों (1948 के लंदन, 1952 के हेलसिंकी और 1956 के मेलबोर्न) में उनके जादुई प्रदर्शन ने ही भारत को हॉकी में सोने का तमगा दिलवाया। तीनों ओलंपिक्स में बलबीर सिंह ने कुल 8 मैच खेले और 22 गोल अपने खाते में दर्ज किए। 1952 के ओलंपिक हॉकी फाइनल में बनाए गए 5 गोल के रिकॉर्ड को तो आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है। सही मायनों में बलबीर सिंह भारतीय हॉकी की विरासत हैं, शायद मेजर ध्यानचंद की तरह ही वे भी जिस सम्मान के हकदार हैं, वो उन्हें कभी मिला ही नहीं।

ओलंपिक का यादगार सफर

बलबीर सिंह सीनियर ने अपने करियर का ओलंपिक सफर 1948 में लंदन से शुरू किया। लंदन ओलंपिक के फाइनल में भारत ने ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से हराकर गोल्ड मैडल पर अपना कब्जा बरकरार रखा। इस मैच में बलबीर सिंह ने 2 गोल अपने नाम किए। 1952 का हेलसिंकी ओलंपिक उनके लिए सबसे यादगार रहा। के डी सिंह की कप्तानी में उतरी भारतीय टीम के ध्वजवाहक यहां बलबीर सिंह थे। सेमीफाइनल मैच में भारत ने बलबीर सिंह की हैट्रिक के दम पर ग्रेट ब्रिटेन को 3-1 से मात देकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मैच में तो बलबीर सिंह ने इतिहास ही रच दिया। उनके दनदनाते हुए 5 गोलों की मदद से भारत ने नीदरलैंड को 6-1 से हराकर अपने गोल्ड मैडल पर कब्जा बरकरार रहा। ओलंपिक फाइनल में 5 गोल का यह रिकॉर्ड आज भी बलबीर सिंह के ही नाम है। भारत ने इस पूरे टूर्नामेंट में 13 गोल किए थे, जिनमें से 9 गोल बलबीर सिंह के नाम थे। 1956 के मेलबाॅर्न ओलंपिक में भारतीय टीम के कप्तान बलबीर सिंह ही थे। अफगानिस्तान के खिलाफ खेले गए पहले मैच में ही उन्होंने 5 गोल ठोके, लेकिन चोट लगने के कारण वे बाकी ग्रुप मैच नहीं खेल सके। उनकी मौजूदगी में ही भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को 1-0 से हराकर एक बार फिर गोल्ड मैडल पर कब्जा जमाया था। इस तरह ओलंपिक के अपने सफर में बलबीर सिंह ने कुल 8 मैच खेले और 22 गोल दागे।

प्रारंभिक जीवन

बलबीर सिंह सीनियर का पूरा नाम बलबीर सिंह दोसांझ है, उनका जन्म 10 अक्टूबर 1924 को पंजाब के हरिपुर खालसा में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई देव समाग हाई स्कूल मोगा से करने के बाद उन्होंने डी एम् कॉलेज और खालसा कॉलेज अमृतसर से आगे की पढाई की। बलबीर ने कम उम्र में ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक में भारतीय टीम विजयी रही थी, जिसे देख बलबीर बहुत प्रेरित हुए थे और यहीं से हॉकी के प्रति उनका जुनून बढ़ना शुरू हुआ।

यहां से उतरे मैदान पर

बलबीर पहले सिख नेशनल कॉलेज, लाहौर में पढ़ते थे, जहां वे हॉकी टीम के खिलाड़ी भी रहे। यहां उनकी मुलाकात कोच हरबैल सिंह से हुई, इन्होंने बलबीर सिंह को अमृतसर के खालसा कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा। इस पर बलबीर अमृतसर आ गए और काॅलेज में दाखिला लेने के बाद हरबैल सिंह के निर्देशन में ही हॉकी की प्रैक्टिस करने लगे। 1942-43 के दौरान बलबीर सिंह को पंजाब यूनिवर्सिटी टीम में शामिल किया गया। लगातार तीन साल (1943, 44 एवं 45) बलबीर सिंह इस टीम के कैप्टेन भी रहे थे। इस दौरान टीम ने इंटर यूनिवर्सिटी टाइटल जीता था। बंटवारे से पहले बलबीर अविभाजित पंजाब की हॉकी टीम के सदस्य बन चुके थे। बलबीर टीम में सेंटर फॉरवर्ड पोजीशन में खेलते थे। बंटवारे के बाद बलबीर अपने परिवार के साथ लुधियाना आकर रहने लगे। 1950 में अफगानिस्तान के खिलाफ, तथा सिंगापुर के खिलाफ तथा 1954 में मलेशिया के खिलाफ भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने टीम को विजय दिलाई। 1958 में हॉकी को टोक्यो एशियाई खेलों में शामिल किया गया। तब बलबीर सिंह ने ही भारतीय टीम का नेतृत्व किया।

देश के पहले पद्मश्री खिलाड़ी

सिंह ऐसे पहले खिलाड़ी बने जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें यह अवार्ड 1957 में दिया। डोमिनिकन रिपब्लिक द्वारा जारी किए गए एक डाक टिकिट पर बलबीर सिंह सीनियर और गुरदेव सिंह थे। यह डाक टिकिट 1956 के मेलबोर्न ओलंपिक की याद में जारी किया गया था। 2006 में उन्हें सबसे अच्छा सिख हॉकी खिलाडी घोषित किया गया। 2015 में उन्हें मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

कोच के रूप में भी दीं सेवाएं

बलबीर सिंह ने जब हॉकी से संन्यास लिया, तो भारतीय हॉकी में उन्हें कोच और मैनेजर बनाने की मांग तेजी से उठी। यही कारण रहा कि उन्हें यह पद स्वीकार भी करना पड़ा। 1962 में अहमदाबाद में अन्तरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता, बलबीर सिंह उस टीम के मैनेजर थे । उनके मैनेजर रहने पर भारतीय टीम ने 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में रजत पदक, 1971 में बार्सिलोना में विश्व हॉकी कप में कांस्य पदक, 1982 में विश्व टूर्नामेंट, एम्सटरडम में कांस्य पदक और 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में रजत पदक जीता ।

हॉकी की धरोहर खोने का दुख

हॉकी और देश की जनता ने बलबीर सिंह को बेहद सम्मान और प्यार दिया लेकिन वे भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के उदासीन रवैये से खासे दुखी रहे हैं। अफसरों की लापरवाही के कारण भारतीय हॉकी के सुनहरे दौर की बलबीर सिंह की यादें खो चुकी हैं। दरबसल, 1985 में हॉकी का संग्रहालय बनाने की योजना शुरू की गई थी। उसके लिए बलबीर सिंह ने अपने ओलंपिक ब्लेजर, नेशनल और इंटरनेशनल  लेवल पर जीते हुए 36 पदक और तत्कालीन दुर्लभ तस्वीरें तत्कालीन साई सचिव को दी थीं। पहले उन्हें कहा गया कि इनकी नुमाइश राष्ट्रीय खेल संग्रहालय में की जाएगी। उन्हें बाद बताया गया कि संग्रहालय दिल्ली में बनाया जाएगा लेकिन यह संग्रहालय कभी बना ही नहीं। 2012 में जब बलबीर सिंह को लंदन में दुनिया के 16 आइकोनिक प्लेयर्स के सम्मान समारोह में सम्मानित करने के लिए अपने मेडल्स के साथ आने का बुलावा आया तो उन्हें पता चला कि उनके मेडल और ब्लेजर खो चुके हैं।

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