नई दिल्ली। हाल ही में पेरिस में हुए तीरंदाजी (Archery) विश्व कप के एक ही दिन में गोल्ड मेडल की हैट्रिक मारकर दीपिका कुमारी (Deepika Kumari) ने टोक्यो ओलंपिक में पदक के लिए मजबूत दावा पेश किया है। इस तरह किसी विश्व कप में तीन गोल्ड मेडल जीतने वाली ना सिर्फ वह एकलौती भारतीय खिलाड़ी बनीं बल्कि नंबर वन रैंकिंग भी पक्की कर ली।
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जिद ने बनाया निशानेबाज
Deepika Kumari आज जिस मुकाम पर है उसके पीछे उनके माता-पिता का त्याग व उसका परिश्रम है। रांची से लगभग 12 किलोमीटर दूर रातू की रहने वाली दीपिका बचपन से ही वह जिद्दी स्वभाव की थीं। यानि वह जो ठान लेतीं वह करती थीं। रातू की गलियों में वह पत्थर से निशाना लगाकर आम तोड़ा करती थी। पिता शिवनारायण आटो चालक और माता गीता देवी नर्स थीं। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि बेटी को तीर धनुष दिलाकर अभ्यास कराते। इसलिए उन्होंने 2005 में दीपिका को अर्जुन मुंडा की तीरंदाजी अकादमी में प्रवेश कराया।
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2006 में जीता पहला गोल्ड मेडल
इसके बाद अर्जुन मुंडा और उनकी पत्नी मीरा मुंडा ने उनकी प्रतिभा को निखारने को काम शुरू किया। 2006 में Deepika Kumari का चयन टाटा तीरंदाजी अकादमी में हुआ। इसके बाद Deepika ने 2006 में ही मेक्सिको में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में कंपाउड सिंगल स्पर्धा में अपने करियर का पहला गोल्ड मेडल जीता। जिसके बाद शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नंबर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया।
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एक के बाद एक पदक जीते
सबसे पहले वर्ष 2009 में महज 15 वर्ष की दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ तीरंदाजी चैंपियनशिप जीत कर अपनी उपस्थिति दर्शाई थी। फिर 2010 में एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। इसके बाद राष्ट्रमंडल खेल 2010 में उन्होने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया। जो क्रम अभी भी जारी है।
मां को विश्वास ओलंपिक में पदक जीतेगी बेटी
पेरिस में विश्व कप तीसरे चरण में गोल्ड मेडल जीतने वाली Deepika Kumari की मां गीता देवी मानती है कि टोक्यो ओलंपिक में वह इस बार पदक जीतेगी। दीपिका अभी लय में हैं और टोक्यो में वह पदक जीते यह हम सबका सपना है।