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Paris Paralympics: जीत के बाद मोना अग्रवाल हुईं भावुक, कहा- बच्चों से भी दूर रहना पड़ा

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Paris Paralympics 2024 Bronze medalist Mona Agarwal got emotional, latest sports news

पेरिस। Paris Paralympics में शुक्रवार को भारत ने मैडल्स का चौका मारा। शुरूआत अवनी लेखरा ने गोल्ड और मोना अग्रवाल ने ब्रॉन्ज मैडल जीतकर की। इसके बाद भारत को एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज सहित दो और पदक मिले। मोना मैडल जीतने के बाद अपने संघर्ष के दिनों को याद करती हुईं बेहद भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि इस सफलता का आधार तैयार करने के लिए उन्हें अपने बच्चों से भी दूर रहना पड़ा।

पैरा शूटर मोना अग्रवाल (Mona Agarwal) ने पैरालंपिक करियर का अपना पहला मैडल 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में ब्रॉन्ज मैडल के रूप में हांसिल किया। उनकी इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर हर क्षेत्र के दिग्गजों ने उन्हें बधाई दी है। मोना का कहना है कि बेहद मुश्किल परिस्थितियों में रहकर भी उन्होंने तैयारी और इसके पीछे उनके परिवार का सपोर्ट बेहद अहम रहा।

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वीडियो कॉल पर ही होती थी बच्चों से बात

मोना ने बताया कि तैयारी के लिए उन्हें अपने बच्चों से भी दूर रहना पड़ा। वीडियो कॉल पर ही उनसे बात हो पाती थी। बच्चे भी ये ही समझते थे कि मम्मी घर वापस आने का रास्ता भूल गई हैं और उन्हें वापस लौटने के लिए जीपीएस की मदद लेनी होगी। 37 वर्षीय पैरा शूटर ने कहा, ’जब मैं अभ्यास के लिए जाती थी तो अपने बच्चों को घर पर छोड़ना पड़ता था। इससे मेरा दिल दुखता था। मैं हर दिन उन्हें वीडियो कॉल करती थी और वे मुझसे कहते थे, ‘मम्मा आप रास्ता भूल गयी हो, जीपीएस पर लगा के वापस आ जाओ’। मैं अपने बच्चों से बात करते समय हर शाम रोती थी, फिर मैंने उन्हें सप्ताह में एक बार फोन करना शुरू कर दिया।

आर्थिक संकटों से भी जूझना पड़ा

पहली बार पैरालंपिक खेलों में भाग ले रही 37 साल की मोना ने Paris Paralympics में अपने इवेंट के शुरूआती दौर में शानदार प्रदर्शन किया। काफी देर तक वो गोल्ड मैडल की दौड़ में भी बनी रहीं लेकिन आखिर में गोल्ड भारत की ही अवनी ने अपने नाम किया। ब्रॉन्ज जीतने के बाद मोना ने संघर्ष के दिनों को याद किया। उन्होंने कहा, ’वह मेरा सबसे मुश्किल समय में से एक था, वित्तीय संकट एक और बड़ी समस्या थी। मैंने यहां तक पहुंचने के लिए वित्तीय तौर पर काफी संघर्ष किया है। मैं आखिरकार सभी संघर्षों और बाधाओं से पार पाकर पदक हासिल करने में सक्षम रही। मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है।

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2010 में छोड़ दिया था घर

पोलियो से पीड़ित मोना ने कहा कि उन्होंने खेल में अपना करियर बनाने के लिए 2010 में घर छोड़ दिया था लेकिन 2016 तक उन्हें नहीं पता था कि पैरालंपिक जैसी प्रतियोगिताओं में उनके लिए कोई गुंजाइश है। उन्होंने कहा, ’मुझे 2016 से पहले पता नहीं था कि हम किसी भी खेल में भाग ले सकते हैं। जब मुझे अहसास हुआ कि मैं कर सकती हूं, तो मैंने खुद को यह समझने की कोशिश की कि मैं अपनी दिव्यांगता के साथ खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हूं। मैंने तीन-चार खेलों में हाथ आजमाने के बाद निशानेबाजी को चुना और अब Paris Paralympics में उसका सफल परिणाम सबके सामने है।’

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