Home Cricket Ipl बीसीसीआई से नहीं छूट रहा चीनी कंपनी का मोह

बीसीसीआई से नहीं छूट रहा चीनी कंपनी का मोह

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आईपीएल में वीवो से करार तोड़ने पर नहीं बन रही सहमति

अब कहा, गवर्निंग काउंसिल की बैठक में ही होगा फैसला

नई दिल्ली। लद्दाख में 20 भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद देशभर में चीन के खिलाफ विरोध की लहर है। केंद्र सरकार भी चीन को आर्थिक झटका देना शुरू कर चुकी है लेकिन तमाम हंगामे के बीच भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) अभी भी चीनी कंपनी वीवो का मोह छोड़ने को तैयार नहीं है। आईपीएल की टाइटल स्पाॅन्सर चीनी कंपनी वीवो से करार तोड़ने के मामले पर अब भी बीसीसीआई टालमटोल ही करता दिख रहा है। बोर्ड का कहना है कि इस संबंध में फैसला आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में ही होगा और यह बैठक कब होगी, यह तय नहीं है।

दरअसल, चाइनीज मोबाइल कंपनी वीवो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की टाइटल स्पॉन्सर है, जो बोर्ड को कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर हर साल 440 करोड़ रुपए देती है। आईपीएल का कंपनी से 5 साल का करार 2022 में खत्म होगा। चीन विरोधी माहौल के बीच बीसीसीआई पर भी दबाव है कि वह वीवो से अपना करार समाप्त कर दे लेकिन नुकसान के डर से बोर्ड ऐसा कर नहीं रहा है। बोर्ड अधिकारियों का तर्क है कि कोरोना वायरस के कारण आईपीएल पहले ही अनिश्चितकाल तक के लिए टल चुका है। दूसरे आयोजन भी बंद पड़े हैं, जिनके कारण बेहिसाब नुकसान हो चुका है। ऐसे में यदि अब वीवो से भी करार तोड़ लिया गया, तो इसकी भरपाई संभव नहीं है।

हालांकि बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि आईपीएल को लेकर आईपीएल गवर्निंग काउंसिल की बैठक में फैसला लिया जाएगा। इसी दौरान वीवो के साथ करार को लेकर रिव्यू भी किया जाएगा। हालांकि, यह मीटिंग कब होगी यह अभी तय नहीं है।

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टी-20 विश्व कप और एशिया कप पर सस्पेंस, आईपीएल कैसे हो?

मीटिंग में शामिल होने वाले एक सीनियर अधिकारी ने कहा, ‘‘इस साल टी-20 वर्ल्ड कप और एशिया कप होंगा या नहीं, यह अभी साफ नहीं हुआ है। ऐसे में आईपीएल को लेकर बैठक कैसे की जा सकती है? हां, हमें अभी स्पॉन्सरशिप को लेकर रिव्यू जरूर करना है, लेकिन अब तक करार तोड़ने या टालने पर कोई फैसला नहीं हुआ है। हमारा कहना है कि अभी रिव्यू करना बाकी है। रिव्यू का मतलब, कॉन्ट्रैक्ट को लेकर सभी नियमों के हिसाब से ही फैसला किया जाएगा। यदि करार तोड़ने का फैसला वीवो के फेवर में होगा, तो हम हर साल 440 करोड़ रुपए का कॉन्ट्रैक्ट खत्म करने का फैसला क्यों करेंगे। हम करार तोड़ने का फैसला तभी करेंगे, तब सबकुछ हमारे ही पक्ष में हो।’’

 

पैसा आ रहा है, जा नहीं रहा

गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व बीसीसीआई के एक पदाधिकारी ने कहा था कि वीवो से स्पॉन्सरशिप करार के जरिए पैसा भारत में आ रहा है, न कि वहां जा रहा है। हमें यह समझना होगा कि चीनी कंपनी के फायदे का ध्यान रखने और चीनी कंपनी के जरिए देश का हित साधने में बड़ा फर्क है। चीनी कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट बेचकर जो पैसा कमाती हैं, उसका बड़ा हिस्सा ब्रांड प्रमोशन के नाम पर बीसीसीआई को मिलता है। बोर्ड उस कमाई पर केंद्र सरकार को 42 फीसदी टैक्स देता है। ऐसे में यह करार चीन के नहीं, बल्कि भारत के फायदे में है।

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