भारतीय टीम का हिस्सा रहे दो दर्जन पूर्व खिलाड़ी अधिकृत कोच बनने की दौड़ में
सभी का एक ही सपना एक बार फिर Olympic गोल्ड हो अपना
नई दिल्ली। लंबे समय तक Indian Hockey मैदान में अपना जादू बिखेरने वाले पूर्व भारतीय खिलाड़ी अब हॉकी की नई पौध को तैयार करने में जुटे हुए हैं। तुशार खांडेकर, दीपक ठाकुर, प्रभजोत सिंह, देवेश चौहान, शिवेंद्र सिंह, भरत क्षेत्री जैसे करीब दो दर्जन पूर्व दिग्गज खिलाड़ी अब कोच के तौर पर अपना हुनर दिखाने को तैयार हैं।
ये Indian Hockey खिलाड़ी हॉकी इंडिया और अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन से सर्टिफिकेट हासिल करने में जुटे हुए हैं ताकि वे अधिकृत कोच के रूप में हॉकी को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकें। 2002 में कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट प्रीतम सिवाच, संगई चानू और हेलेन मैरी सहित कई खिलाड़ी इसके लिए अनिवार्य कोर्स को पूरा कर चुके हैं और अब नई भूमिका में मैदान में लौटने की तैयारी कर रहे हैं।
जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान टोक्यो ओलंपिक कोर ग्रुप में शामिल 32 पुरुष और 23 महिला टीम के सदस्यों ने एक ऑनलाइन बेसिक कोर्स में हिस्सा लिया था। यह कोर्स हॉकी इंडिया की उस पहल का हिस्सा था जिसमें भारत में हॉकी कोचिंग पिरामिड को और बेहतर किया जा सके।
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Hockey India के हाई पर्फोमेंस कोच डेविड जॉन के अनुसार अप्रेल 2019 से प्रक्रिया शुरू होने के बाद से करीब 650 कोच इस सर्टिफिकेशन कोर्स में हिस्सा ले चुके हैं। हालांकि अधिकांश अन्य क्षेत्रों की तरह Indian Hockey खिलाड़ियों को कोचिंग में लाने की सोच काफी देर से जगी है। जैसे कि नीदरलैंड में सीनियर क्लब या राष्ट्रीय टीम के खेलते हुए ही खिलाड़ी जूनियर टीमों को प्रशिक्षण देने में जुट जाते हैं। ऐसा ही ऑस्ट्रेलिया में भी होता है, जहां Hockey खिलाड़ी सक्रिय करियर के दौरान कोचिंग शुरू करते हैं। उदाहरण के लिए, 2016 ओलंपिक में ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलने वाले 34 वर्षीय क्रिस सिरिएलो, वर्तमान में भारतीय पुरुष टीम के विश्लेषणात्मक कोच हैं।
हालांकि जरूरी नहीं अच्छा Hockey खिलाड़ी बेहतर कोच भी बने
Hockey India के हाई पर्फोमेंस कोच डेविड जॉन का कहना है कि Indian Hockey में कई विश्व स्तरीय खिलाड़ियों की मौजूदगी के बाद भी उनको कोच के रूप में बदलते हुए और प्रभावी भूमिका अदा करते हुए कम ही देखा जाता है। भारत के आखिरी बार 1980 में ओलंपिक मेडल जीतने के बाद से ऐसे चुनिंदा नाम एमके कौशिक, राजिंदर सिंह सीनियर, वासुदेव भास्करन और हरेंद्र सिंह ही हैं। जॉन कहते हैं कि आमतौर पर ऐसा समझा जाता है कि महान खिलाड़ी एक महान कोच भी हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। जॉन के अनुसार सिर्फ सर्टिफिकेट हासिल कर लेने से ही चमत्कार नहीं होगा लेकिन इससे भारत में खेल शैली को बदलने में काफी सहयोग मिलेगा, विशेषत: सब जूनियर लेवल पर।
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खेल बदलता रहता है, हर दिन कुछ नया सीखना जरूरी: खांडेकर
रियो ओलंपिक में Indian Hockey टीम के असिस्टेंट कोच रहे तुषार खांडेकर कहते हैं कि इस कोचिंग प्रोग्राम से उन्हें खिलाड़ियों की चोटों के बारे में जानने और उससे निपटने में काफी मदद मिली है। इसके साथ खिलाड़ियों की मानसिकता और प्रबंधन समझने में भी काफी मदद मिली है। खांडेकर ने बताया कि इन दिनों अधिकांश कार्यरत प्रशिक्षकों के पास राष्ट्रीय खेल संस्थान का डिप्लोमा है। इस तरह के डिप्लोमा और प्रशिक्षण से कोचेज को खेल के प्रति सोचने का व्यापक दृष्टिकोण मिलता है।
खुद की अकादमियां भी चला रहे कई पूर्व Hockey खिलाड़ी
2002 की कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट Indian Hockey टीम की सदस्य रही प्रीतम सिवाच की तरह ही कई पूर्व हॉकी खिलाड़ी अकादमियां भी चला रहे हैं जहां से नया हुनर निकल कर सामने आ रहा है। सिवाच सोनिपत में Hockey अकादमी का संचालन कर रही हैं जहां नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। सिवाच कहती हैं कि नए खिलाड़ियों को हमेशा दबाव से दूर रहना चाहिए और इसी कारण वे खुद अपनी अकादमी में नए खिलाड़ियों को कई दिन तक हॉकी स्टिक तक नहीं पकड़ने देती। उनका कहना है कि इस अकादमी के जरिए वे छोटी ही सही लेकिन खेल के प्रति सकारात्मक भूमिका अदा कर रही हैं।