नई दिल्ली। दुनिया में खेलों का महाकुंभ कहा जाने वाला Olympic रविवार को नई उम्मीद और सतरंगी रोशनी के बीच सम्पन्न हो गया। इस ओलंपिक खेलों में भारतीय महिला शक्ति का अद्भूत प्रदर्शन देखने को मिला। इन खेलों में भारत की बेटी वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतकर महिला शक्ति को आगे बढ़ाया। बेटियों ने ओलंपिक खेलों की अपनी 69वीं सालगिरह को यादगार बना डाला। पहली बार भारत की बेटियों ने किसी ओलंपिक में पदक की हैट्रिक लगाई। कुछ ने अपने शानदार खेल प्रदर्शन से भविष्य की नई उम्मीद जगाई। बात दें कि भारतीय महिलाओं ने पहली बार 1952 हेलसिंकी में भाग लिया था।
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मीराबाई चानू ने की शुरुआत
टोक्यो Olympic मीराबाई चानू (49 किग्रा) ने पहले ही दिन सिल्वर मेडल हासिल कर भारत की अन्य बेटियों को राह दिखाई। साथ ही दुनिया में भारतीय महिला शक्ति का अहसास करवा दिया। चानू के इस पदक ने वेटलिफ्टिंग को नया जीवन दिया है। मीराबाई चानू ने 21 साल बाद देश को वेटलिफ्टिंग में पदक दिलाया। उनसे पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 सिडनी ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था।
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सिंधु के कांसे ने रचा इतिहास
टोक्यो Olympic में विश्व चैंपियन पीवी सिंधू भले ही सोना जीतने से चूक गईं हो लेकिन उनके ब्रॉन्ज मेडल ने भी इतिहास रच दिया। वह लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली बेटी और कुल दूसरी खिलाड़ी बन गईं। सेमीफाइनल में ताई से हारने के बाद सिंधू ने तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में दमदार खेल का प्रदर्शन करते हुए ओलंपिक खेलों में भारत को दूसरा पदक दिलाने में कामयाब रहीं।
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रिंग में लवलीना कमाल
पहली ही बार Olympic में खेलने वाली असम की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) भारतीय रिंग की नई मलिका बन गईं। उन्होंने अपने मुक्कों से मुक्केबाजी में नई इबारत लिख दी। वह दिग्गज मैरीकॉम के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की दूसरी बिटिया जबकि कुल तीसरी बॉक्सर बनीं। मैरी भले ही दूसरा पदक नहीं जीत पाईं लेकिन उन्होंने अपने खेल से सभी का दिल जीत लिया।
हॉकी में बेटियों ने लिखी नई इबारत
भारत की ओर पहली बार Olympic खेलों में महिला हॉकी टीम ने रानी रामपाल के नेतृत्व में हॉकी खेल में नई उम्मीद जगा दी है। तीन मैच हारने के बाद बेटियां जिस तरह से लड़ी और पदक के मुकाबले तक पहुंची वह मिसाल बन गईं। भले ही वह ब्रिटेन से कांस्य पदक के मुकाबले में चूक गईं लेकिन उनकी यह हार किसी जीत से कम नहीं है।
अदिति ने दिखाया अदम्य साहस
लगातार दूसरे Olympic में खेलने वाली गोल्फर अदिति अशोक ने अदम्य साहस दिखाया हालांकि वह दो स्ट्रोक से पदक चूक गईं। लगातार तीन दिन तक शीर्ष दो में रहने वाली अदिति की किस्मत ने अंतिम दिन उनका साथ नहीं दिया और वह चौथे स्थान पर रहीं। इसके बाद उन्होंने कहा मैंने अपना 100 प्रतिशत दिया, लेकिन ओलंपिक में पदक की तुलना में चौथे स्थान के मायने नहीं हैं। किसी भी अन्य टूर्नामेंट में यदि मैं इस स्थान पर रहती तो मुझे वास्तव में खुशी होती, लेकिन चौथे स्थान से खुश होना मुश्किल है।
कमलप्रीत ने जगाई नई उम्मीद
पहली बार Olympic में खेली डिस्कस थ्रोअर कमलप्रीत ने भी फाइनल में पहुंचकर कमाल कर दिया। पंजाब की कमलप्रीत 63.70 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो लगाकर छठे स्थान पर रहीं पर उन्होंने भविष्य की उम्मीद जगा दी।