Sachin Tendulkar : महानता सिर्फ रिकॉर्ड्स से नहीं, सोच से भी होती है

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जयपुर। Sachin Tendulkar : विश्व क्रिकेट में हाल ही में एक नया और अनचाहा विवाद शुरू हुआ, भारत और इंग्लैंड के बीच खेली जाने वाली 5 टेस्ट मैचों की सीरीज के नाम को लेकर। पहले ’पटौदी ट्रॉफी’ के नाम से जानी जाने वाली इस सीरीज का नाम अब बदलकर ’तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी’ किया गया। इस पर विवाद हो गया। दरअसल, पटौदी ट्रॉफी 2007 में भारत के 1932 में अपने पहले टेस्ट की 75वीं वर्षगांठ मनाने के दौरान अस्तित्व में आई थी। सीरीज का ये नाम इंग्लैंड और भारत दोनों का प्रतिनिधित्व करने वाले इफ्तिखार अली खान पटौदी और उनके बेटे नवाब मंसूर अली खान पटौदी के सम्मान में रखा गया था। मंसूर अली महज 21 साल की उम्र मेें सबसे कम उम्र के भारतीय टेस्ट कप्तान बने थे।

विवाद तब शुरू हुआ जब हाल ही में बीसीसीआई और इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने एक नई घोषणा की कि 2025 से यह टेस्ट सीरीज अब “तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी” के नाम से जानी जाएगी, जिससे क्रिकेट जगत में न केवल हैरानी, बल्कि विवाद भी पैदा हो गया।

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इस फैसले को लेकर क्रिकेटप्रेमियों और विशेषज्ञों की कई प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कुछ लोगों ने इसे दो महान खिलाड़ियों – सचिन तेंदुलकर और जेम्स एंडरसन – को सम्मान देने का सही प्रयास माना, तो वहीं बड़ी संख्या में लोग इस बदलाव से व्यथित हुए। विशेष रूप से पटौदी परिवार और उनसे जुड़े इतिहास को मानने वालों को यह निर्णय उचित नहीं लगा। यही वो क्षण था जब सचिन तेंदुलकर ने एक बार फिर मैदान के बाहर अपनी महानता का परिचय दिया।

Sachin Tendulkar ने इस विषय पर एक सार्वजनिक बयान दिया कि उन्हें इस ट्रॉफी का नाम अपने और एंडरसन के नाम पर रखे जाने की खबर पहले से नहीं थी और जब उन्हें यह जानकारी मिली, तो उन्होंने तुरंत यह सुझाव दिया कि “पटौदी ट्रॉफी” नाम को बदला नहीं जाना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि मंसूर अली खान पटौदी की विरासत, नेतृत्व और योगदान को भुलाया नहीं जा सकता और यह नाम उस इतिहास का प्रतीक है, जिसे हमें संजोकर रखना चाहिए।

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यह वही Sachin Tendulkar हैं, जिन्होंने अपने करियर में 200 टेस्ट मैच खेले, 100 अंतरराष्ट्रीय शतक लगाए और लगभग 34,000 अंतरराष्ट्रीय रन बनाए। लेकिन ये आँकड़े ही उन्हें महान नहीं बनाते। उन्हें महान बनाता है उनका दृष्टिकोण- दूसरों को सम्मान देना, इतिहास के प्रति संवेदनशील रहना और अपनी लोकप्रियता का प्रयोग निःस्वार्थ उद्देश्यों के लिए करना। जब उन्हें यह मौका मिला कि उनके नाम पर एक प्रतिष्ठित ट्रॉफी रखी जा रही है, तब उन्होंने अपनी विनम्रता और दूरदर्शिता से यह कहकर सबका दिल जीत लिया कि ’इस बदलाव से किसी की विरासत को नहीं मिटाया जाना चाहिए।’

आज के दौर में जब कई लोग स्वयं को स्थापित करने के लिए हर स्तर तक जाने को तैयार रहते हैं, वहां सचिन जैसे दिग्गज का यह रुख भारतीय खेल संस्कृति के लिए एक मिसाल है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि एक खिलाड़ी मैदान में जितना बड़ा हो, उतना ही बड़ा उसे दिल से भी होना चाहिए। सचिन की इस बात से यह स्पष्ट हो गया कि उनके लिए क्रिकेट केवल रिकॉर्ड्स का खेल नहीं, बल्कि मूल्यों, इतिहास और भावनाओं का संगम है।

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इस पूरे विवाद से एक और बात उभरकर सामने आईकृजनता और मीडिया का Sachin Tendulkar के प्रति प्रेम। जब उनके बयान सामने आए, तो सोशल मीडिया पर समर्थन की लहर चल पड़ी। क्रिकेट प्रशंसकों ने उन्हें ’विनम्र योद्धा’ और ’सच्चे लेजेंड’ कहकर सम्मानित किया। यह भावना दिखाती है कि सचिन तेंदुलकर केवल रिकॉर्ड्स की वजह से नहीं, बल्कि अपने व्यवहार, सोच और आत्मसंयम की वजह से आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं।

पटौदी ट्रॉफी का नाम तो शायद भविष्य में क्या होगा यह तय नहीं, लेकिन सचिन तेंदुलकर ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि यह ट्रॉफी केवल एक श्रृंखला नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट की विरासत की पहचान बनी रहे। सचिन के लिए यह सिर्फ ट्रॉफी का नाम नहीं था, यह एक पीढ़ी को सम्मान देने का मुद्दा था, जिसे उन्होंने पूरी गंभीरता और सम्मान के साथ उठाया।

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कई लोग उन्हें ’क्रिकेट का भगवान’ कहते हैं, लेकिन सच कहें तो वह उस ईश्वर की तरह हैं जो सबको जगह देता है, सबका सम्मान करता है और खुद को सबसे ऊपर नहीं मानता। यही विनम्रता उन्हें महान बनाती है। यह उनकी सोच ही है जो उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाती है। उनके शब्दों में वह गरिमा होती है जो शतकों में नहीं दिखती, बल्कि आत्मा की गहराई में बसती है।

इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल क्रिकेट को एक नया दृष्टिकोण दिया, बल्कि यह भी बताया कि नेतृत्व केवल पिच पर नहीं, शब्दों और सोच में भी होता है। Sachin Tendulkar ने अपने इस छोटे से हस्तक्षेप से यह सिद्ध कर दिया कि एक खिलाड़ी की पहचान उसकी सादगी, उसकी संवेदनशीलता और दूसरों को सम्मान देने की प्रवृत्ति से होती है।

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जब भी भविष्य में “तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी” या “पटौदी ट्रॉफी” की बात होगी, तब सिर्फ नामों की चर्चा नहीं होगी, बल्कि एक ऐसे खिलाड़ी की भी बात होगी जिसने नाम से अधिक इतिहास और सम्मान को तरजीह दी। Sachin Tendulkar ने यह दिखा दिया कि असली हीरो वह नहीं जो सबसे ऊपर हो, बल्कि वह होता है जो सबको साथ लेकर चलता है और सबको उनकी जगह का मान देता है।

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